मैं आज अपनी बात थोडे अलग ढंग से रख रहा हूं, संभव है ज्यादातर मनुष्यों को यह गलत लगेगीा मेरा मानना है हम सारे नौकरीपेशा लोग एक प्रोडक्ट हैा यदि नहीं हैं तो फि र हम यह क्यों कहते है. यार मार्केट वेल्यू बनी रहनी चाहिए, आजकल मेरा मार्केट डाउन हैा इस बात को लिखने की प्रेरणा मुझे सुबह अपने अखबार से मिलीा मैंने आज का हिन्दुस्तान टाईम्स उठाया तो उसका पूरा ले आउट व कंटेट बदला हुआ थाा एक अखबार जो अंग्रेजी अखबारों में लगतार आगे बना हुआ है, उसे बदलाव की क्या जरूरत ा सीधी से बात है पाठकों को जोडे रखना, मार्केट वेल्यू बनाए रखनाा
सीधी बात यह है कि कोई भी प्रोडक्ट या व्यक्ति बहुत दिनों तक एक जैसे रंग रूप और तौर तरीकों के साथ बाजार में लीडर नहीं बना रह सकता ा आपको समय समय पर कुछ न कुछ ऐसा करना चाहिए जो बाजार की नजरों में आपको लाए, यानी जिसकी चर्चा हो ा हम जिस मार्केट में हैं वहां सफलता का फार्मूला बहुत दिनों तक गुप्त नहीं रह सकताा बाजार में ज्यादातर कंपनियां और व्यक्ति ऐसे हैं जो दूसरे के कामों की नकल करने में बिल्कुल देरी नहीं करते ा संभव है नकल के जरिए वे मूल फार्मूले वाले से भी आगे निकल जाए ा
नकल के बाजार का सबसे बडा उदाहरण है पानी की बोतलों का धंधाा बिसलरी ने अपनी नीले रैपर वाली बोतल के साथ बाजार में प्रवेश किया, सफलता हासिल की ा देखते ही देखते तमाम कंपनियां बाजार में आई अपनी बोतल की डिजाइन व रैपर का कलर भी नीला ही चुना ये है नकल का बाजार, बिसलरी ने इसे समझा और अपने रैपर का रंग हरा कर दिया ा उस हरे रंग ने बाजार की उस दौड में ऐसा रंग जमाया कि बिसलरी सबसे अलग और सबसे आगे हो गयाा हम जैसे नौकरीपेशा लोगों और कंपनियों दोनों को यह मानकर चलना चाहिए कि सफलता के एक ही फार्मूले से चिपककर आगे नहीं बढा जा सकता ा
जरा गौर करिए कोई भी प्रोडक्ट तभी तक बाजार में रहता है जब तक वह उपभोक्ता की जरूरतें पूरी करता है, तो हम इससे अलग कैसे हैं, हम भी तभी तक किसी भी संस्था का हिस्सा बने रह सकते हैं जब तक हम उनकी जरूरतों को पूरा करते हैं, जिस तरह हम बेहतर प्रोडक्ट की तलाश में बाजार पर नजर रखते हैं, कंपनियां भी बेहतर कर्मचारियों की तलाश में बाजार पर नजर रखती है ा जब हम बेहतर साबुन मिलने पर तीन पीढियों से चला आ रहा लाल साबुन तत्काल बदल देते हैं तो कंपनी कर्मचारी क्यों न बदलेा ये तो संभव ही नहीं कि आपको लाल साबुन से लगाव है तो आप उसे भी खरीदते रहेंगे एक बार उससे नहाएंगे फिर दूसरे से ा
कुल मिलाकर एक बात साफ है इस प्रतिस्पर्धा में अपनी वेल्यू बनाए रखने के लिए हमें काम और व्यावसायिक रिश्तों की नई परिभाषा को समझना चाहिए वह यह है कि' कंपनी में मशीनों की तरह हम एक पुर्जा हैं जिसकी न किसी से दोस्ती है न दुश्मनी इस मशीन का लक्ष्य है काम और परिणाम ा हमे एक ऐसे मजबूत प्रोडक्ट की तरह बनना होगा जिसके बिना काम ही नहीं चल सकताा आप देखिए कई चीजें ऐसी होती है जो महंगी होने के बावजूद हम दूसरे खर्च कम कर उनका इस्तेमाल जारी रखते हैं, जिदंगी में पूछ परख भी ऐसे ही लोगों की होती है जो महंगे होने के बावजूद अपनी उपयोगिता बनाए रखते हैं ा
कुछ अलग' इसमें बहुत थोडे अपवाद भी हो सकते हैं, हम कई बार देखते हैं कि बेहतर प्रोडक्ट भी मार्केटिंग पैकेजिंग या गलत इस्तेमाल की वजह से बाजार में फेल हो जाते हैं, कई बेहतर कर्मचारियों के साथ भी यह हो सकता है, संभव है कंपनी उनकी प्रतिभा को नहीं पहचान सकी हो, या उन्हें ऐसे काम सौंप दिए हो जो उनकी प्रतिभा से एकदम अलग हो, जैसे नहाने के साबुन को सफेद शर्ट धोने में इस्तेमाल करना ओर कह देना ये साबुन ही खराब है,इसमें साबुन का नहीं इस्तेमाल करने वाला का दोष है ा यदि आप ऐसे हालात से भी गुजर रहे हैं तो तत्काल अपनी मार्केटिंग करिए और ऐसा मालिक तलाशिए जिसे काम लेने का सलीका आता हो, वरना बाजार हमें नाकाबिल घोषित करने में देर नहीं करेगा ा
Saturday, July 11, 2009
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very good really touch to heart
ReplyDeleteये दुनिया एक बाज़ार है और हर चीज़ बिकाऊ....इन्सान भी:)
ReplyDeleteहर चीज बिकती है, बात तो ये है कि कीमत किस चीज की कितनी है औऱ क्या है
ReplyDeleteok,i will. narayan narayan
ReplyDeleteवाह भई,
ReplyDeleteआपको तो बोधज्ञान हो गया।
उत्पादन के बुर्जुआ संबंधों में श्रमशक्ति, उत्पादन के लिए जरूरी एक माल की तरह ही अपना अस्तित्व रखती है।
चूंकि इसके पास खु़द को बेचने के अलावा और कोई विकल्प नहीं होता अतः इसे ही कुछ मानवश्रेष्ठ सर्वहारा वर्ग कहते हैं।
जब यह माल है तो जाहिरा तौर पर इस पर सभी आर्थिक नियम लागू होते हैं।
एक अच्छी पोस्ट और दृष्टि।
हिंदी भाषा को इन्टरनेट जगत मे लोकप्रिय करने के लिए आपका साधुवाद |
ReplyDeleteबहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है…मेरे ब्लोग पर आपका स्वागत है।आपके भाव दिल में उतर गए। बहुत अच्छा लिखा है बधाई।
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